कोटद्वार में दिखा आध्यात्म का दिव्य नजारा, सकारात्मक सोच के साथ जीना ही सच्चा जीवन है- माता सुदीक्षा
सुकून एवं आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाले निरंकारी संत समागम का विशाल आयोजन हल्दुखाता की धरा पर सतगुरु माता सुदीक्षा एवं निरंकारी राजपिता रमित की पावन छत्रछाया में आयोजित हुआ जिसमें हजारो की संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने सम्मिलित होकर सत्संग का भरपूर आनंद प्राप्त किया और सतगुरु के अमोलक प्रवचनों का श्रवण कर अपने जीवन को कृतार्थ किया। सतगुरु माता ने समागम में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी आत्मा का इस परमात्मा से इकमिक होकर मोक्ष की प्राप्ति करना ही मनुष्य जीवन का परम् लक्ष्य है जिसके लिए हम सब एक आध्यात्मिक सफर पर है और इस पर चलकर हम वास्तविक रूप में ईश्वर से जुड़कर भक्तिमार्ग की ओर अग्रसर हो सकते है। यह आत्मिक संबंध ही वास्तव में स्थायी आनंद की प्राप्ति है। मुक्तिमार्ग के विषय में समझाते हुए सतगुरु माता जी ने बताया कि प्राचीन समय से ही संतों ने अपनी रब्बी बाणियों के माध्यम से हमें सदैव यही समझाने का प्रयत्न किया है कि ईश्वर को जानकर ही भक्ति की जा सकती है और उसके उपरांत ही हम जीते जी मोक्ष की प्राप्ति के हकरदार बनेंगे। एक सफल जीवन की प्राप्ति सांसारिक उपलब्धियां नहीं अपितु ब्रह्मज्ञान द्वारा परमात्मा से इकमिक होकर उसके एहसास में रहना है। संसार में रहते हुए संसार के प्रति आसक्ति न धारण कर, इस परमात्मा का ध्यान करते हुए भक्ति द्वारा आध्यात्मिक जीवन में सदैव आगे बढ़ते जाना है। स्थिर परमात्मा का जिक्र करते हुए सतगुरु माता ने फरमाया कि भक्त सदैव परमात्मा की रजा में रहकर शुकराने के भाव से अपना जीवन जीते है। सभी में इस परमात्मा का ही दिव्य रूप देखते हुए सबसे प्रेम करते है। यह मानवीय गुण जीवन में तभी रहते है जब हम इन्हें धारण करते है। संतों ने संसार से विरक्ति लेने को जीवन नहीं बताया अपितु परमात्मा को अपने जीवन में शामिल करते हुए हर पल सकारात्मक सोच के साथ जीने को ही सच्चा जीवन बताया है। इस अवसर पर निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने हल्दुखाता निरंकारी सत्संग भवन का उद्घाटन भी किया। अंत में स्थानीय मुखी सतेंद्र सिंह बिष्ट एवं जिला संयोजक निर्पेश तिवारी ने दिव्य युगल का सभी भक्तों को पावन दर्शन देने हेतु हृदय से आभार व्यक्त किया। साथ ही प्रसाशन के सराहनीय योगदान के लिए भी धन्यवाद दिया।