राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार, राजकीय महाविद्यालय बनबसा चम्पावत, राजकीय महाविद्यालय बिठयाणी, पौड़ी के संयुक्त तत्वावधान में समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित किया गया।
वेबिनार का प्रारम्भ राजकीय महाविद्यालय बनबसा चम्पावत के प्राचार्य प्रो. ए. पी. सिंह और मुख्य वक्ता प्रो. भगवान सिंह बिष्ट जी के दीप प्रज्वलन एवं स्वागत गीत से प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम का संचालन वेबिनार के संयोजक डॉ. संदीप कुमार के द्वारा वेबिनार की उदेश्य, विषय वस्तु से अवगत कराते हुए किया गया।
वेबिनार के डायरेक्टर, प्राचार्य राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार प्रो. डी. एस. नेगी जी ने वेबिनार में आंमत्रित सभी अतिथियों, वक्ताओं, प्राध्यापकगण, रिसर्च स्कॉलर, और स्टूडेंट्स का स्वागत किया गया और अपने उद्धबोधन में वेबिनार की सफलता के लिए शुभकामनायें दी।
प्रो. डी. एस. नेगी जी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवम्बर 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तब से लेकर अब तक इस प्रदेश ने शिक्षा, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, रोजगार, और सामाजिक विकास के क्षेत्र में अनेक मील के पत्थर स्थापित किए हैं।
परंतु इन उपलब्धियों के साथ-साथ चुनौतियाँ भी हमारे सामने हैं — पलायन, बेरोजगारी, और पारंपरिक संस्कृति का क्षरण जैसी समस्याएँ आज भी हमें सोचने को विवश करती हैं। इस वेबिनार में निश्चित रूप से इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा।
प्रो. ए. पी. सिंह, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय बनबसा चम्पावत,ने अपने विचारों से अवगत कराते हुए कहा कि आज हम उत्तराखंड राज्य की 25 वर्षों की सामाजिक यात्रा — उसकी उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह आयोजन केवल एक वेबिनार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा, उसकी संस्कृति और संघर्ष की कहानी को पुनः देखने का प्रयास है। वेबिनार में प्रो. ए. पी. सिंह कहा कि “उत्तराखंड का समाज अपनी सांस्कृतिक विविधता, मानवीय मूल्यों और सामूहिक चेतना के कारण विशिष्ट पहचान रखता है।”
उन्होंने कहा कि राज्य की स्थापना के 25 वर्षों में सामाजिक ढाँचे में कई सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं, परंतु इन उपलब्धियों को स्थायी बनाने के लिए समाज में जागरूकता और उत्तरदायित्व की भावना का होना आवश्यक है। प्रो. सिंह ने कहा कि “राज्य का संतुलित विकास तभी संभव है जब हम नीति निर्माण में स्थानीय संस्कृति, परंपरा और सामुदायिक मूल्यों को आधार बनाएं।”
उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि वे अपने गाँवों और समुदायों से जुड़कर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में कार्य करें।
मुख्य वक्ता के रूप में आंमत्रित प्रो. भगवान सिंह बिष्ट जी ने अपने वक्तव्य में उत्तराखंड के गठन के 25 वर्षों में सामाजिक प्रगति का विश्लेषण किया।महिला सशक्तिकरण,शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक धरोहर पर चर्चा की। पलायन और रोजगार के मुद्दों पर भी गंभीर चर्चा की।
वक्ता के रूप आंमत्रित प्रो. ए. एन. सिंह, प्राचार्य राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय रुद्रपुर ने अपने वक्तव्य में विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि उत्तराखंड की 25 वर्षों की सामाजिक यात्रा में कई उपलब्धियां के साथ साथ कहीं चुनौतियां भी रही है। वर्ष 1998 में मेरे द्वारा राजकीय महाविद्यालय कोटद्वार में कोमर्स विभाग में ज्वाइन किया गया और वर्ष 2000 में उत्तराखंड अस्तित्व में आया, तब से विकास की यात्रा चल रही है, आज राज्य स्वास्थ्य सेवा के साथ साथ शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। चाहे चिपको आंदोलन हो, मैती आंदोलन हो चाहे राजनितिक भागीदारी हो महिलाये अपनी भूमिका निभा रही है। पहाड़ो पर स्वरोजगार के अवसर भी सरकार के द्वारा लोगों को उपलब्ध कराये जा रहे है। निश्चित रूप से इससे राज्य का विकास हो रहा है।
प्रख्यात समाजशास्त्री एवं शिक्षाविद्, प्रो. प्रशांत कुमार सिंह, डीन फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स, श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ऋषिकेश कैंपस ने अपने व्याख्यान में कहा कि “उत्तराखंड की 25 वर्षों की सामाजिक यात्रा केवल विकास की गाथा नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक चेतना, संघर्ष और पहचान का प्रतीक भी है।”
उन्होंने आगे कहा कि राज्य ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है, परंतु पलायन, बेरोजगारी और असंतुलित शहरीकरण जैसी चुनौतियाँ अभी भी हमारे सामने हैं। प्रो. प्रशांत कुमार सिंह ने इस बात पर भी बल दिया कि “भविष्य की दिशा तभी सुनिश्चित होगी जब समाज का हर वर्ग समान रूप से विकास की प्रक्रिया में सहभागी बने।”
वेबिनार में प्रश्न उत्तर का सेशन भी आयोजित किया गया जिसमें, स्टूडेंट्स, रिसर्च स्कॉलर ने वक्ताओं से विभिन्न प्रकार के प्रश्न किये और वक्ताओं के द्वारा उत्तर भी दिए गए।
समापन सत्र में प्रो. योगेश कुमार शर्मा, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय बिथयानी, पौड़ी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए सभी आमंत्रित वक्ताओं, प्रतिभागियों एवं आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि “ऐसे संवाद सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरक शक्ति का कार्य करते हैं, और यह हमारे शैक्षणिक जगत की सक्रियता का प्रमाण हैं।”
उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे स्थानीय संसाधनों और संस्कृति के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाएँ, जिससे उत्तराखंड आत्मनिर्भर और संवेदनशील राज्य के रूप में स्थापित हो सके।
कार्यक्रम को सफल बनाने में सह- संयोजक डॉ. सुरेखा घिल्डियाल, डॉ. श्रद्धा सिंह, आयोजन सचिव डॉ. राजीव कुमार सक्सेना, डॉ. राम सिंह सामंत ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वेबिनार में विभिन्न विभिन्न संस्थानों के प्राध्यापकगण, रिसर्च स्कॉलर और स्टूडेंट्स उपस्थित रहे।
